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अग्नी॑षोमा॒ सवे॑दसा॒ सहू॑ती वनतं॒ गिर॑:। सं दे॑व॒त्रा ब॑भूवथुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnīṣomā savedasā sahūtī vanataṁ giraḥ | saṁ devatrā babhūvathuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्नी॑षोमा। सऽवे॑दसा। सहू॑ती॒ इति॒ सऽहू॑ती। व॒न॒त॒म्। गिरः॑। सम्। दे॒व॒ऽत्रा। ब॒भू॒व॒थुः॒ ॥ १.९३.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:93» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:29» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सहूती) एकसी वाणीवाले (सवेदसा) बराबर होमे हुए पदार्थ से युक्त (अग्नीषोमा) यज्ञफल के सिद्ध करनेहारे अग्नि और पवन (देवत्रा) विद्वान् वा दिव्यगुणों में (सम्बभूवथुः) संभावित होते हैं वे (गिरः) वाणियों को (वनतम्) अच्छे प्रकार सेवते हैं ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग यज्ञ आदि उत्तम कामों से वायु के शोधे विना प्राणियों को सुख नहीं हो सकता, इससे इसका अनुष्ठान नित्य करें ॥ ९ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

यो सहूती सवेदसाग्नीषोमा देवत्रा सम्बभूवथुः सम्भवतस्तौ गिरो वनतं भजतः ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्नीषोमा) यज्ञफलसाधकौ (सवेदसा) समानेन हुतद्रव्येण युक्तौ (सहूती) समाना हूतिराह्वानं ययोस्तौ (वनतम्) संभजतः (गिरः) वाणीः (सम्) (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु दिव्यगुणेषु वा (बभूवथुः) भवतः ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्नहि यज्ञादिक्रियया वायोः शोधनेन विना प्राणिनां सुखं संभवति तस्मादेतन्नित्यमनुष्ठेयम् ॥ ९ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी यज्ञ इत्यादी उत्तम कामांनी वायू शुद्ध केल्याशिवाय प्राण्यांना सुख लाभत नाही. त्यामुळे त्याचे अनुष्ठान नित्य करावे. ॥ ९ ॥